दस सहस्र जप करै जो कोई। सक काज तेहि कर सिधि होई।। अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे। पुरवहु मातु मनोरथ मोरे।। कामतुल्यश्च नारीणां शत्रूणां च यमोपमः। सम्पूज्य कवचं नित्यं पूजायाः फलमालभेत्॥ ३२ ॥ नवनीतं चाभिमन्त्रय स्त्रीणां दद्यान्महेश्वरि। सम्बोधनपदं पातु नेत्रे श्री बगलानने॥ १ ॥ कण्ठदेशं मनः पातु वाञ्छितं बाहुमूलकम् ॥ https://franciscojuhra.blogaritma.com/29229145/the-best-side-of-baglamukhi